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हाइकु / सुनीता पाहुजा / कविता भट्ट

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1
कैसे हो पार
सागर ये अपार
नाव में पानी ।

कन छाँ पार
समोद्र यु अपार
नौ माँ च पाणी
2
सँभाले गुरु
तभी भव-सागर
होगा ये पार।

सैंकु जु गुरु
तबी भव-सागर
होलु यु पार
3
शांत-अशांत
सागर-सा ये मन
रहे न थिर।

सांत-असांत
समोद्र सि यु मन
राईँ नि स्थिर
4
ऊँची उठतीं
सागर की लहरें
जियरा डोले।

उच्ची उठणी
समोदर कि लैर
ज्यू डगमग
5
बहती नदी
कशमकश में है-
कहाँ किनारा।

बगदी गंगा
दुंद यु ह्वयूँ च कि-
कख किनारु
6
नदी व मन
बहते झऱ-झऱ
रुके हैं कब।

गंगा र मन
बगदा झर-झर
रुक्यन कब
7
मन ज्यों नदी
चंचल-चपल है
नहीं स्थिरता।

मन गंगा सि
च्यूँचळ च च्यूँचळ
नि च दिर्घम
8
नदी गहरी
कैसे हो पार सखी
नाव में पानी।

गंगाजी गैरी
कन्नी छैं पार गैल्या
नौ माँ पाणी च
9
शीतल रखे
पत्थरों को भी
नदी का जल।

ठण्डु रखदु
ढुंगौं तैं बि हाँ बल
यु गंगाजल
10
ऊँचे पर्वत
छोड़ ,झुक जाती है
पाती सम्मान।

उच्चा इ पाड़
छोड़ि कि, झुकि जाँदी
पौंदि च माँन
11
रोके न रुकें
नदियाँ मदमस्त
बहें निर्बाध।

रोकि नि रुक्दिं
गंगा नसा म चूर
बग्दी निर्बाद
12
क्षुधा पिपासा
सबका समाधान
नदी निष्काम।
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