भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद / अज्ञेय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:26, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह= }} <Poem> : याद : सिहरन : उड़ती सारसों की...)
याद : सिहरन : उड़ती सारसों की जोड़ी
याद : उमस : एकाएक घ्हिरे बादल में
कौंध जगमगा गई।
सारसों की ओट बादल
बादलों में सारसों की जोड़ी ओझल,
याद की ओट याद की ओट याद।
केवल नभ की गहराई बढ़ गई थोड़ी।
कैसे कहूँ की किसकी याद आई?
चाहे तड़पा गई।