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अगर तुम युवा हो-2 / शशिप्रकाश

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स्‍मृतियों से कहो
पत्‍थर के ताबूत से बाहर आने को ।
गिर जाने दो
पीले पड़ चुके पत्‍तों को,
उन्‍हें गिरना ही है ।
बिसुरो मत,
न ही ढिंढोरा पीटो
यदि दिल तुम्‍हारा सचमुच
प्‍यार से लबरेज़ है ।
तब कहो कि विद्रोह न्‍यायसंगत है
अन्‍याय के विरुद्ध ।
युद्ध को आमन्त्रण दो
मुर्दा शान्ति और कायर-निठल्‍ले विमर्शों के विरुद्ध ।
चट्टान के नीचे दबी पीली घास
या जज्‍ब कर लिए गए आँसू के क़तरे की तरह
पिता के सपनों
और माँ की प्रतीक्षा को
और हाँ, कुछ टूटे-दरके रिश्‍तों और यादों को भी
रखना है साथ
जलते हुए समय की छाती पर यात्रा करते हुए
और तुम्‍हें इस सदी को
ज़ालिम नहीं होने देना है ।
रक्‍त के सागर तक फिर पहुँचना है तुम्‍हें
और उससे छीन लेना है वापस
मानवता का दीप्तिमान वैभव,
सच के आदिम पंखों की उड़ान,
न्‍याय की गरिमा
और भविष्‍य की कविता
अगर तुम युवा हो ।