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अनुबन्ध लिखो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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अधरों से अधरों पर, कोई अनुबन्ध लिखो पलकों के काजर से, तुम नूतन छन्द लिखो ।

मादकता -सी आकर गलियों में बात टिके, ख़ुशबू की पुरवैया सावन के हाथ बिके। रक्त कपोलों पर, छुअन की सुगन्ध लिखो।

देह की लतिका पर इठलाता रहे यौवन, रोम-रोम हो पुलकित पाकर मधु आलिंगन । व्याकुल प्राणों में तुम, फिर प्रेम-प्रबन्ध लिखो

साँसों के इंगित को, जाने बनजारा मन, अलकों की छाया में झूम उठे चन्दन -तन । साथ चलो छाया-सी, ऐसा सम्बन्ध लिखो । -0-(9-4-86: सैनिक समाचार-8 फ़रवरी 87)