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फुलझड़ी / अशोक शाह

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धरती के सुदूर देहरी पर रखा जलता हुआ दीया देखा प्रकम्पित प्रकाष में अनापेक्षित चींटियाँ लौट रही थीं घर पंक्तिबद्ध मानो पृथ्वी के मजदूर लपक रहे हो घर भरते जल्दी-जल्दी डेग

नहीं जानता इस दीपावली के शुभ मुहूर्त में पहँुच पाँएगें घर लिए हाथों में एक फुलझड़ी अवनि की आखिरी छोर पर खडे़ प्रतिक्षारत अपने मासूमों के लिए