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दानव / सुबोध सरकार / दिविक रमेश
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पढ़ता नहीं कविता
मछली का व्यापारी,
ना ही
पढ़ता है कविता
शहद का व्यापारी,
मरणासन्न युवक
तुम भी तो नहीं पढ़ते कविता !
ना ही पढ़ते हैं ज्योति बाबू कविता ।
पढ़ते नहीं कविता
छापने वाले भी, संकलन कविताओं के ।
पढ़ते नहीं कविता
विश्वविद्यालतों के आचार्य भी ।
तो क्या
पढ़ते हैं हर कविता, दानव ही ?
तो क्या
ख़रीदते हैं दानव ही
पुस्तकें कविताओं की ?
अनुवाद : दिविक रमेश