भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिम की मार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
181
आँधी उमड़ी
गरीब का छप्पर
दूर ले उड़ी ।
63
तेरा मिलना
सूखे पतझर में
फूल खिलना।
64
कंटक -पथ
साथ नहीं सारथी
चलना ही है।
65
सदा वन्दन
तुमसे है ज्योतित
मेरा जीवन!
66
हिम की मार
कोंपल है गुलाबी
झेल प्रहार।
67
ये हरी दूब
शीत को ओढ़कर
खुश है खूब।
68
धूप से डरा
हिम को भी छूटा है
आज पसीना
69
प्राण मिलते
तुम हो संजीवनी
शब्द- ऋचा से।
-0-