नौ शिशु कविताएँ / श्याम सुन्दर अग्रवाल
1-बिल्ली बोली
बिल्ली बोली म्याऊँ,
मैं चूहे को खाऊँ।
चूहा बोला, भाग जा,
नहीं मैं पकड़ा जाऊँ।
2-उड़ान
पापा मुझको ला दो राकेट,
बैठ गगन में जाऊँगी ।
कान पकड़करके मैं चाँद को
धरती पर ले आऊँगी
3-कुकड़ू-कूँ
चिड़िया करती चीं-चीं-चीं,
करे कबूतर गुटरू गूँ।
सुबह-सवेरे हमें जगाता,
बोल के मुर्गा कुकड़ू-कूँ।
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4-घड़ी
टिक-टिक करती चले घड़ी,
बिना पाँव के खड़ी-खड़ी।
रुके नहीं, ये थके नहीं,
दीवार पर रहे सदा चढ़ी।
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5-चल मुन्ना…
चल मुन्ना तुझे सैर कराऊँ,
बगिया में तितली दिखलाऊँ।
देखेंगे हम रात में तारे,
चंदामामा बड़े ही प्यारे।
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6-मुन्ने की नाव
कागज की नाव
मम्मी ने बनाई।
वर्षा के पानी में
मुन्ने ने चलाई।
तेज-तेज पानी ने
खूब दौड़ाई।
7-तीन भाई
तीनों बच्चे शेर के,
तीनों सगे हैं भाई।
एक साथ पैदा हुए,
रहती सदा लड़ाई।
चीख-चीखकर करते रहते,
सदा ये जोर अजमाई।
कौन बड़ा और कौन है छोटा,
पहेली सुलझ न पाई।
8-बच्चों का पेड़
आँगन में जो पेड़ नीम का,
मीठा उसे बना दो।
भगवन सुन लो बच्चों की तुम,
फलों से उसे सजा दो।
एक डाल पर लगें संतरे,
एक डाल पर लीची-आम।
मीठे केले लगा नीम पर,
करो उसे बच्चों के नाम।
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9-चूहे हुए सयाने
भूख लगी बिल्ली मौसी को
तो वह पूरे गाँव में डोली।
चूहा पास में एक न आया
चाहे कितना मीठा बोली।
सभी कोशिशें हुईं फेल तो
नया दाव था अपनाया।
चूहों को धोखा देने को
अपने को खूब छिपाया।
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