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आत्मा का विस्तार (द एक्सपेंन्स आफ स्पिरिट0 सॉनेट/ विलियम शेक्सपियर / विनीत मोहन औदिच्य

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चूंकि नहीं है कोई सहायक, हम लें चुंबन और हों पृथक
नहीं, मैं हूँ आश्वस्त, तुम नहीं हो सकोगी मुझसे संयुक्त
और मैं हूँ आनंदित, हाँ पूर्ण मन से आनंदित अथक
कि इस प्रकार स्पष्टता से मैं स्वयं हो सकता हूँ मुक्त।

सदा के लिए मिला हाथ, हम करें सभी शपथ स्थगित
ताकि जब फिर कभी हम मिलें जो दोबारा
ये सोच, हम में से कोई न दिखाई दे तनिक भी व्यथित
कि पुराने प्रेम का अभी तक है शेषांश हमारा ।

अब अंतिम उसाँस प्रेम की, नवीनतम शेष श्वास
जब उसकी छूटती सी नाड़ी, मौन रहती भावना
जब घुटने मोड़े हुए हो, उसकी मृत्यु शय्या निकट विश्वास
और उसकी बंद आँखें कर रहीं हो निर्दोषता का सामना ।

अब यदि तुम चाहो, जब सभी कर चुके हों उसे समर्पित
तुम ही हो, जो कर सकती हो, उसे फिर से पुनर्जीवित ।।