भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकड़ गया रमजानी / राम सेंगर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 8 जुलाई 2019 का अवतरण
रात अन्धेरी,
भूड़<ref>गेहूँ-जौ की फ़सल की पहली सींच </ref> और ज़ालिम बम्बा का पानी ।
इत मून्दे, उत फूटे
किरिया-भरा न दीखे
फरुआ चले न खड़ी फ़सल में
खीझे-झींके
पहली सींच
ठण्ड में भीगा
अकड़ गया रमजानी ।
लालटेन अलसेट दे गई
शीशा टूटा
उड़ी शायरी
‘पत्ता पत्ता-बूटा बूटा’
हाल न उसका
कोई जाने
कैसी अकथ कहानी ।
मिट्टी में लिथड़े
पाजामा-पहुँचे धोए
कोट न फतुही थर-थर काँपे
खोए-खोए
रोक मुहारा
आस्तीन से
पोंछ रहा पेशानी ।
बगीचिया से बीन जलावन
आग जलाई
देह सिंकी, बीड़ी
सुलगी
कुछ गरमी आई
बदली सूरत का
सच जाना
बढ़ी और हैरानी ।
शब्दार्थ
<references/>