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काव्य का वितरण (अनु०- पीयूष दईया) / जॉर्ज डे लिमा

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मैंने लिया वनस्पतियों से जंगली शहद,
मैंने लिया नमक पानियों से, मैंने रोशनी ली आकाश से।

सुनो, मेरे भाइयो! मैंने काव्य लिया सब-कुछ से
इसे देवता को अर्पित करने वास्ते।
मैंने नहीं खोदा था सोना धरती से
या चूसा जोंक की तरह ख़ून अपने भाइयों का।

सरायवासियो! मुझे अकेला होने दो।
फेरीवालो और साहूकारो !
मैं फ़ासलों को गढ़ सकता हूँ
तुम्हें अपने से परे रखने के लिए।

जीवन एक विफलता है,
मैं विश्वास करता हूं ईश्वर के जादू में।
बसेरू मुर्गे बांग नहीं दे रहे,
दिन उतरा नहीं है।

मैंने देखा जहाजों को जाते और आते।
मैंने देखा दुर्दशा को जाते और आते।
मैंने देखा चर्बीले आदमी को आग में।
मैंने देखा सर्पीलाकारों को अंधेरे में।

कप्तान, कहाँ है कांगो ?
कहाँ है संत ब्रैंडॉन का टापू ?
कप्तान, कितनी काली है रात !

ऊँची नस्लवाले कुत्ते भौंकते हैं अंधेरे में।
ओ ! अछूतों, देश कौन सा है
कौन सा है देश जिसकी तुम इच्छा रखते हो ?

मैंने लिया वनस्पतियों से जंगली शहद ,
मैंने लिया नमक पानियों से, मैंने रोशनी ली आकाश से।

मेरे पास केवल काव्य है तुम्हें देने को।
बैठ जाओ, मेरे भाइयो।
 
पुर्तगाली से अंग्रेज़ी में भाषान्तर : जॉन निस्ट
अंग्रेज़ी से हिन्दी में भाषान्तर : पीयूष दईया