भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / प्रयाग शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:35, 5 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल }} बहुत ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बहुत दूर था चन्द्रमा

उसकी आभा थी

पास


एक हाथ था

मेरे हाथ में


धमनियों में बह

रही थी

पृथ्वी ।