भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हास्य-रस -एक / अकबर इलाहाबादी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 18 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} Category:ग़ज़ल </poem> * तमाशा देखिये बि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

</poem>

तमाशा देखिये बिजली का मग़रिब और मशरिक़ में कलों में है वहाँ दाख़िल, यहाँ मज़हब पे गिरती है.

तिफ़्ल में बू आए क्या माँ -बाप के अतवार की दूध तो डिब्बे का है, तालीम है सरकार की

कर दिया कर्ज़न ने ज़न मर्दों की सूरत देखिये आबरू चेहरों की सब ,फ़ैशन बना कर पोंछ ली

मग़रबी ज़ौक़ है और वज़ह की पाबन्दी भी ऊँट पे चढ़ के थियेटर को चले हैं हज़रत

जो जिसको मुनासिब था गर्दूं ने किया पैदा यारों के लिए ओहदे, चिड़ियों के लिए फन्दे

</poem>