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छाता / केशव
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नज़र घुमाकर देखो
कोने में
हर पल तत्पर
किसी भी मौसम के लिए
तुम्हारा छाता
यह अलग बात है
पिछले मौसम में
कुछ कम भीगा
धूप की छेनी ने
छीला
पर
आड़ा
तिरछा
इस बार
कुछ ज़्यादा आयेगा
आँधी-पानी
धूप निश्चय ही
होगी तीखी
पर छाता
तुम्हारे ऊपर तनने के लिए
हर पल तैयार है
सवाल यह है
कि छाते पर तुम्हारी पकड़
जितनी मज़बूत होगी
आँधी
पानी
धूप
उतनी ही कमज़ोर होगी
</[Poem>