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अपने इन दुखों को / रवीन्द्रनाथ त्यागी
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अपने इन दुखों को
बेकार मत जाने दो
चेहरे के चिराग से
आँसुओं के पतंगों को
यूँ ही न उड़ जाने दो,
ये सागर की लहरें हैं
इनमें ज्वार आया है
इन्हें यूँ ही न बह जाने दो।
दुख तुम्हें यतन करने से मिले हैं
बर्षों के तप और प्रतीक्शा से मिले हैं
इन्हें यूँ ही न खो जाने दो
आओ, इन दुखों से धरती बो दें
इन्हें चारों ओर घर-घर बिखरा दें
जिससे गानों की फ़सल उगे
लाल-लाल रंगीन भरे-पूरे गाने
तुम्हारे हृदय के रक्त से सने।