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नाराज होने से क्‍या होगा / सौरीन्‍द्र बारिक

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आज नाराज होने से क्‍या होगा तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है

याद है न ! चुपचाप मेरी कापी से कविता पढ रही थी और तुम्‍हारे पढने के लिए ही लिख रहा था मैं चांद उगने पर कुईं खिले बिना रह सकती है कभी ?

लेकिन बड़ा कुशल है चांद वह सागर में भर देता है ज्‍वार उसे कुमुद की भला कैसी चिन्‍ता ? वह अपने में मस्‍त, पर कुमुद लाचार खिलने को विवश।

तुम्‍हें कैसे मालूम होगा कि मैं कविता की खातिर कितनी बार मरता हूं और जीता हूं। और किसी वैराग्‍य-आसक्ति में जल-जल कर राख हो जाता हूं।

आज नाराज होने पर क्‍या होगा तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है।

उडि़या से अनुवाद - वनमाली दास