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ख़त-एक / अवतार एनगिल
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जाने कब
किस मोड़ पर
किस भेस में
मिल जाये
बहुरूपिया
जाने कब वह
बादल पुते
काले आकाश से उतरे
और कहे--
चलें?
जाने कब किसी चमचमाते धवल दिन
वह बाज़ की मानिंद गिरे
और झपट ले
इस नन्हीं चिड़िया को
बीचों-बीच
हवा में ही
लुका-छिपी के इस खेल में
तुम्हारा बहुरूपिया
जाने कब
सिपाही बनकर आये
इस चोर की घिग्घी बँधे
वह इस काँपती कलाई पर हाथ धरे
और हँसकर कहे:
पकड़ लिया न!