भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़की जीना चाहती है / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:28, 19 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: समय की धूप से संवलाई सलोनी सी लड़की है वह जिसकी आंखें अपने वक्‍त क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समय की धूप से संवलाई सलोनी सी लड़की है वह जिसकी आंखें अपने वक्‍त की पीड़ा को असाधारण ढंग से उद़भाषित करती छिटका देती हैं विस्‍फारित कोरों तक जहां वर्तमान की गर्द लगातार उस चमक को पीना चाहती है पर लड़की जीना चाहती है अनवरत

आंसू उसकी पलकों की कोरों पर मचलते रहते हैं संशय के दौर चलते रहते हैं गुस्‍सा की-बोर्ड पर चलती उंगलियों के पोरों से छिटकता रहता है शून्‍य के परदे पर और वह बहती रहती है विडंबनाओं के किनारे काटती