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सभ्यता बंदी है / रमा द्विवेदी
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कहने को इक्कीसवीं सदी,पर
बर्बरता का नंगा नाच यहां।
सभ्यता यहां पर बनी है बंदी,
अब तक भी नारी का उपहास यहां॥
नारी की यातनाओं का,कभी न -
खत्म होने वाला सिलसिला।
रक्षक ही भक्षक बन बैठे जब,
तब फिर किससे करें गिला॥
एक है देवी, दूसरा दानव,
कैसे हो सकता है मेल भला?
देवी-असुर संग्राम चल रहा,
किसकी होगी जीत यहां ॥
महाभारत तो कुछ दिन चला था,
सदियों का संग्राम है यह।
दुष्टों के उत्पातों का,
दुष्परिणाम भुगतता समाज है यह॥