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तोड़ने वालों के लिए / सौरभ
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बना डालो मन्दिर बेगुनाहों की लाशों पर बना डालो मन्दिर इस देश की कीमत पर बना डालो मन्दिर हिन्दुओं की जगाने के लिए लाखों मन्दिर भी जिन्हें जगा न सके खून से सनी भव्य इमारत शायद जगा दे इन्हें और तुम्हें भी जिन्हें जगा न सकी गाँधी की शहादत कृष्ण की बाँसुरी भी जिन्हें जगा न सके रामृष्ण परमहंस भी जिन्हें उठा न सके उन्हें उठाने के लिए दो चार मसि्जदें और गिरान पड़ें तो गिराओं निःसंकोच शर्त यह है मगर जगने की हो गारंटी और उठाने वाले खुद उठे हों अफसोस इस बात का है सोया हुआ दूसरे को क्या उठाएगा जब यह काम जागे हुए न कर सके जो काम जोड़ने वालों से न हुआ उसे तोड़ने वाले क्या कर पाएँगे? </poem>