भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो जंजीरें खुलीं / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:35, 1 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} <Poem> रात आसमाँ के घर नज्म़ मेहमाँ ब...)
रात आसमाँ के घर नज्म़ मेहमाँ बनी
चाँदनी रातभर साथ जाम पीती रही
बादलों ने जिस्म़ से जँजीरें जो खोलीं
नज्म़ सिमटकर हुई छुईमुई-छुईमुई
ख्वाबों ने नज्मों का ज़खीरा बुना
हरफ रातभर झोली में सजते रहे
नज्म़ टाँकती रही शब्द आसमाँ में
आसमाँ जिस्म़ पे गज़ल लिखता रहा
वक्त पलकों की कश्ती पे होके सवार
इश्क के रास्तों से गुज़रता रहा
तारों ने झुक के जो छुआ लबों को
नज्म़ शरमा के हुई छुईमुई,छुईमुई