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जो जंजीरें खुलीं / हरकीरत हकीर

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रात आसमाँ के घर नज्‍म़ मेहमाँ बनी
चाँदनी रातभर साथ जाम पीती रही
बादलों ने जिस्‍म़ से जँजीरें जो खोलीं
नज्‍म़ सिमटकर हुई छुईमुई-छुईमुई

ख्‍वाबों ने नज्‍मों का ज़खीरा बुना
हरफ रातभर झोली में सजते रहे
नज्‍म़ टाँकती रही शब्‍द आसमाँ में
आसमाँ जिस्‍म़ पे गज़ल लिखता रहा

वक्‍त पलकों की कश्‍ती पे होके सवार
इश्‍क के रास्‍तों से गुज़रता रहा
तारों ने झुक के जो छुआ लबों को
नज्‍म़ शरमा के हुई छुईमुई,छुईमुई