परसेनिलिटी का सवाल है / शैल चतुर्वेदी
आज से दर बरस पहले
न जाने कौन सी अशुभ घड़ी में
एक ज्योतिषी को हमने
अपना हाथ दिखाया था
जिसने हमें बताया था-
"शनी रेखा मणिबंध से निकल कर
मध्यमा पर चढ़ गई है
प्रतिष्ठा, धन, बंगाला और कार है
सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा को टच कर रही है
मतलब साफ है की बेड़ा पार है
बुध का माउंट
किसी फिल्म फायनेंसर के
पेट की तरह तना है
अँगूठे पर कैमरे का निशान बना है
शुक्र का माउंट
हाथ में बुरी तरह फैला है
हीरो बनोगे
क़िस्मत में ख़ूबसुरत लैला है"
और सचमुच ही के दिन
हमारा दुर्भाग्य जागा
और केतु हमें बम्बई ली भागा
एक शाम
थर्ड क्लास होटल में
पिटे हुए फ़िल्म निर्माता से हो गई राम-राम
कहने लगा-"दस बरस पहले
सैक्स की देते हुए दुहाई
हामने ऐसी फ़िल्म बनाई
जो मैटर के मामले में
आज के कवियों की तरह उधार थी
मगर फ़िल्म में
चुम्बनो की भरमार थी
एक धांसू खलनायक को लेकर
हीरोइन पर ऐसा सीन फ़िल्माया
कि आलिंगन लेते ही
उसकी आंखे बाहर निकल आई
आंखे अंदर करवाई
तो पेट बाहर निकल आया
खलनायक पुण्य ले गया
पाप को हल सम्हाल रहे हैं
बाप समझकर पाल रहे हैं
आदमी ख़ुराफ़ात की जड़ है
इसलिए, मैं अगली फ़िल्म में
गधे को हीरो बनाऊँगा
और गधे के भीतर
इंसान की आत्मा दिखाउंगा
जब इंसान गधा हो सकता है
तो क्या गधा इंसान नहीं
मिस्टर बकवास मेहरा को जानते हो
उन्होने न जाने
कितने गधों को इंसान बना दिया
उनमें से कइयों ने
जुहू में बंगला बनवा लिया
"मैं भी एक गधे की तलाश में हूँ
जिसे मेकअप करके शेर देखा सकूं"
हमने सलाह दी-"तुम शेर को ही
हीरो क्यों नहीं बनाते"
वो बोला-"तुम भी गधे जैसी
म-म-मेरा मतलब है
कैसी बात कर रहे हो
शेर को हीरो बनाएंगे
तो सारा मांस वो ही खा जाएगा
हम क्या खाएंगे"
इस बार
मेरी फ़िल्म का नाम होगा
गधा मेरा यार
थीम सांन लिखेंगे 'गधानंद झक्की'
बोल होंगे, ढेंचू ढेंचू ढेंचू
दुनिया मुझको देखे
मैं दुनिया को देखूं
क्यों भाई कैसा आएडिया है
गधे को भी
क्या ग्लेमर दिया है
भाई साहब!
आज का दर्शक पल्ला नहीं
खुल्लम खुल्ला मांगता है
मैं बिल्ला पर फिल्म बनाऊंगा
देश के नौजवानों को
जो बिल्ला नहीं सिखा पाया
मैं सिखाऊंगा
राजकपूर ने गलती की
फ़िल्म का नाम 'सत्यम शिवम सुन्दरम' नहीं
'नंगम धड़ंगम शरीरम' रख देता
तो