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व्यंग्यकार से / शैल चतुर्वेदी
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हमनें एक बेरोज़गाल मित्र को पकड़ा
और कहा, "एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?"
तो बोला, "पहले खाना खिलाओ।"
खाना खिलाय तो बोला, "पान खिलाओ।"
पान खिलाया तो बोला, "खाना बहुत बढ़िया था
उसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।
अपन खुद ही देश की छाती पर जीते जागते व्यंग्य हैं
हमें व्यंग्य मत सुनाओ
जो जन सेवा के नाम पर एश करता रहा
और हमें बेरोज़गारी का रोजगार देकर
कुर्सी को कैश करता रहा।