Last modified on 21 अगस्त 2006, at 01:01

घर पहुँचना / कुंवर नारायण

पूर्णिमा वर्मन (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 01:01, 21 अगस्त 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर

अपने अपने घर पहुँचना चाहते



हम सब ट्रेनें बदलने की

झंझटों से बचना चाहते



हम सब चाहते एक चरम यात्रा

और एक परम धाम



हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं

और घर उनसे मुक्ति



सचाई यूँ भी हो सकती है

कि यात्रा एक अवसर हो

और घर एक संभावना



ट्रेनें बदलना

विचार बदलने की तरह हो

और हम सब जब जहाँ जिनके बीच हों

वही हो

घर पहुँचना