भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छिपकली / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
ऋषभ देव शर्मा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:02, 22 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह= }} <Poem> चिपक गई है मेरे दिमा...)
चिपक गई है
मेरे दिमाग में
एक प्रागैतिहासिक छिपकली
निरंतर फड़फड़ा रही है
अपने लंबे मैले पंख
और प्रदूषित होती जा रही है
पीयूष रस से भरी मेरी डल झील
गोताखोर तलाशेंगे
कुछ दिन बाद
इसके तल में
आक्सीजनवाही मछलियों के
जीवाश्म !