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रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 2
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वसुधा का नेता कौन हुआ?
- भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
- नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
विघ्नों में रहकर नाम किया।
जब विघ्न सामने आते हैं,
- सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
- तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
जाते हैं हमें जगाकर ही।
वाटिका और वन एक नहीं,
- आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,
- पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
बागों में शाल न मिलते हैं।
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,
- छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,
- लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
वे ही शूरमा निकलते हैं।
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,
- मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे,
- तन को पत्थर बन जाने दे।
तू स्वयं तेज भयकारी है,
क्या कर सकती चिनगारी है?
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
- बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
- पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।