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देशोद्धारकों से / प्रभाकर माचवे

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कवि: प्रभाकर माचवे

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मृदुल नींद नीड़ की गोद में

और परों की सेज नरम,

बाहर झुलसी हवा बह रही

रह-रह कर लू तेज़ गरम,

बाहर अर्धनग्न पीड़ा

भीतर क्रीड़ा-लबरेज़ हरम,

करुणा के आँगन में, नेता

दे थोड़ी-सी भेज शरम !