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अपनी-अपनी बात / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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रचनाकार: ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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अपनी-अपनी बात कह कर उठ गये महफ़िल से लोग

दूसरों की जो सुने, मिलते हैं वो मुश्किल से लोग


तैरने वाले की जय-जयकार दोनों पार से

देखते हैं डूबने वाले को चुप साहिल से लोग


आदमी जो भी वहाँ पहुँचा वो जीते जी मरा

हादसा यह देखकर डरने लगे मंज़िल से लोग


जान भी देने की बातें यूँ तो होती हैं यहाँ

पर दुआएँ तक कभी देते नहीं हैं दिल से लोग


इससे भी बढ़कर तमाशा और क्या होगा पराग

पूछते हैं ज़िंदगी की कैफ़ियत क़ातिल से लोग