भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं डरता हूँ / शहरयार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 5 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार }} <poem> ,ऐं ड...)
,ऐं डरता हूँ,
मैं डरता हूँ, उन लम्हों से
उन आने वाले लम्हों से
जो मेरे दिल और उसके इक-इक गोशे में
बड़ी आज़ादी से ढूँढ़ेंगे
उन ख़्वाबों को, उन राज़ों को
जिन्हें मैंने छिपाकर रखा है इस दुनिया से।