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अशवों को चैन ही नहीं आफ़त किये बगैर / जोश मलीहाबादी
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अशवों को चैन ही नहीं आफ़त किये बगैर
तुम, और मान जाओ शरारत किये बगैर!
अहल-ए-नज़र को यार दिखाना रह-ए-वफ़ा
ए काश! ज़िक्र-ए-दोज़ख-ओ-जन्नत के बगैर
अब देख उस का हाल कि आता न था करार
खुद तेरे दिल को, जिस पे इनायत किये बगैर
ए हमनशीं मुहाल है नासेह का टालना
यह, और यहाँ से जाएँ नसीहत किये बगैर
तुम कितने तुन्द-खू हो कि पहलू से आज तक
एक बार भी उठे न क़यामत किये बगैर