भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उनींदे की लोरी (कविता) / गिरधर राठी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:12, 22 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गिरधर राठी }} <poem> साँप सुनें अपनी फुफकार और सो जा...)
साँप सुनें अपनी फुफकार और सो जाएँ
चींटियां बसा लें घर-बार और सो जाएँ
गुरखे कर जाएँ ख़बरदार और सो जाएँ