भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊँचि डांड्यू तुम नीसि जावा / गढ़वाली
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: महिमानंद ममगाईं
ऊँचि डांड्यू तुम नीसी जावा
घणी कुलायो तुम छाँटि होवा
मैकू लगी छ खुद मैतुड़ा की
बाबाजी को देखण देस देवा
मैत की मेरी तु त पौण प्यारी
सुणौ तु रैवार त मा को मेरी
गडू गदन्य व हिलाँस कप्फू
मैत को मेर तुम गीत गावा
भावार्थ
--'हे ऊँची पहाड़ियो! तुम नीची हो जाओ ।
ओ चीड़ के घने वृक्षो! तुम समने से छँट जाओ ।
मुझे मायके की याद सता रही है,
मुझे पिता जी का देस देखने दो ।
ओ मेरे मायके की हवा !
मेरी माँ का सन्देश सुना ।
ओ नदी-नालो! ओ हिलाँस पक्षी! ओ कप्फू!
तुम सब मिल कर मेरे मायके का गीत गाओ ।'