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हम तुम / नईम

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लेखक: नईम

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हम तुम

कोशिश ही करते रह गये जनम भर¸

लेकिन वो

जाने¸ क्यूं¸ कैसे –

रातों–रात महान हो गये?


नये संस्करण में किताब के –

शब्द असम्भव शेष नहीं अब¸

कदम–कदम

सीढ़ी–दर–सीढ़ी

चलने वाला देश नहीं अब

बिना बात के मरते ही रह गये जनम भर

अनचाहे इनको आसंदी¸

उनके लिए मचान हो गये


परम्पराओं के क्या मानी¸

देश–काल हो गये असंगत

श्राद्धपक्ष ही नहीं साल भर

कौवे जीम रहे हैं पंगत


हम तुम

हुक्के भरते ही रह गये जनम भर

कोढ़ खाज से गलित आचरण –

उनके आज प्रमाण हो गये