भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुला आसमान / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:56, 11 मई 2007 का अवतरण (New page: रचनाकारः सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" Category:कविताएँ [[Category:सूर्यकांत त्र...)
रचनाकारः सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!
दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,
खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़,
लड़कियाँ घरों को कर भासमान!
लोग गाँव-गाँव को चले,
कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले,
जाँघिया-लँगोटा ले सँभले,
तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!
पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,
बातें करती हैं वे सब खड़ी,
चलते हैं नयनों के बाण!