रचनाकार: ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
जो बड़े काम किया करते हैं
वो कहाँ श्रेय लिया करते हैं
नेकनामी से चुराते नज़रें
दाग सीने पे लिया करते हैं
ख़ुदकुशी खुद़ नहीं करता कोई
लोग मजबूर किया करते हैं
दम हवाओं का यहाँ घुटता है
किस तरह लोग जिया करते हैं
प्यास उनकी भी कहाँ बुझाती है
जो सुबह शाम पिया करते हैं
आपकी बददुआ के बदले हम
चन्द अशआर दिया करते है
लोग डरते हैं जहाँ जाने से
हम उसी ठौर ठिया करते हैं