भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शारदे / महेश अनघ
Kavita Kosh से
पूर्णिमा वर्मन (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:16, 12 सितम्बर 2006 का अवतरण
मूर्तिवाला शारदे को
हथौड़े से पीटता है
एक काले दिन
कलमुंही तू दो टके की
क्यों गई थी कार में
क्या वहां साधक मिलेंगे
सेठ में सरकार में
खंडिता हो लौट आई
हाथ में बख्शीस लेकर
पर्व वाले दिन
तू फ़कीरों कबीरों के
वंश की संतान है
साहबों की साज़ सज्जा
के लिए सामान है
इसलिए कच्चे घरों में
ओट देकर तुझे पाला
और टाले दिन
कामना थी पांव तेरे
महावर से मांड़ते
फिर किसी दिन पूज्य स्वर से
सात फेरे पाड़ते
क्या करें ऊंचे पदों ने
पद दलित कर छंद सारे
मार डाले दिन