कुछ अशआर / फ़ानी बदायूनी
इस बाग़ में जो कली नज़र आती है।
तसवीरे-फ़सुर्दगी नज़र आती है॥
कश्मीर में हर हसीन सूरत ‘फ़ानी’।
मिट्टी में मिली हुई नज़र आती है॥
फूलों की नज़र-नवाज़ रंगत देखी,
मख़लूक़ कि दिल-गुदाज़ हालत देखी,
कु़दरत का करिश्मा नज़र आया कश्मीर,
दोज़ख़ में समोई हुई जन्नत देखी॥
दैर में हरम में गुज़रेगी।
उम्र तेरे ही ग़म में गुज़रेगी॥
हाँ नाखू़ने-ग़म कमी न करना।
डरता हूँ कि ज़ख़्मेदिल न भर जाये॥
ग़ैरत हो तो ग़म की जुस्तजू कर।
हिम्मत हो तो बेक़रार हो जा॥
चुन लिया तेरी मुहब्बत ने मुझे।
और दुनिया हाथ मलकर रह गई॥
हूँ असीरे-फ़रेबे-आज़ादी<ref>स्वतंत्रता के धोके का क़ैदी</ref>।
पर है और मश्क़े-हीलये-परवाज़<ref>पर होते हुए भी न उड़ने के लिए बहाना ढूँढ़ना</ref>
इश्क है परतवे-हुस्ने-महबूब<ref>प्रेयसी के सौंदर्य का प्रतिबिम्ब</ref>।
आप अपनी ही तमन्ना क्या खू़ब॥
अब लब पै वोह हंगामये-फ़रियाद नहीं है।
अल्लाह रे तेरी याद कि कुछ याद नहीं है॥