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दो मुक्तक / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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मैं उजाला हूँ
मैं उजाला हूँ ,उजाला ही रहूँगा ।
अँधेरी गलियों में ज्योति-सा बहूँगा ।
चाँद मुझे गह लेंगे कुछ पल के लिए ,
पर मैं रोशनी की कहानी कहूँगा ॥
उपहार
पल जो भी मिले हैं मुझे उपहार में ।
उनको लुटा दूँगा मैं सिर्फ़ प्यार में ।
नफ़रत की फ़सलें उगाई हैं जिसने;
मिलेगा उसे क्या अब इस संसार में ॥