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रह गया सब कुछ / वीरेंद्र मिश्र

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कवि: वीरेंद्र मिश्र

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रह गया सब कुछ बिखर कर

इन दिनों है दुख शिखर पर


एक पल में हो गया सब कुछ अधूरा

कुछ हुआ ऐसा कि टूटा तानपूरा

शब्द का संगीत चुप है कांपता हर गीत थर-थर


और ऊपर उठ रही है तेज़ धारा

यह किसी रूठी नदी का है इशारा

द्वीप जैसा हो गया है बाढ़ में घिरता हुआ घर


देखने में नहीं लगता साधुओं सा

दुख शलाका पुरुष-सा है आंसुओं का

रहा आंखों में बहुत दिन आज है लंबे सफ़र पर।