भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैवेन्टर्स ईस्ट-2 / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:51, 22 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम }} {{KKCatNazm}} <poem> '''कैवेन्टर्स ईस्ट उस म...)
कैवेन्टर्स ईस्ट उस मकान का नाम था जिसमें अज्ञेय जी रहते थे
उस दिन
जब गर्म दूध से जला अपना हाथ
मेरे कांधे पर रख
तुम ने खिंचवाई थी
तस्वीर
तो मुझे कहाँ मालूम था कि तुम
मुझे सब्ज़-बाग़ दिखा कर
मेरे कमज़ोर कांधे की कुव्वत देख रहे हो!
अब तो ये सवाल भी पूछूँ तो किस से पूछूँ कि
क्या तुमने उस वक़्त
कांधे की क़ुव्वत की कमज़ोरी भी भाँपी थी?
नहीफ़ो-नाज़ार कांधे पर
तुम्हारी पोरों के लम्स का लम्बा लम्हा
दूर तक फैला हुआ है और
मैं
तन्हा खड़ा हूँ...