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रोशनी की याचना / निर्मला जोशी

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<poet> गीत गाने का मुझे अवकाश तो था ही नहीं पर दीप कोई जल गया तो रोशनी की याचना की।

दूर तक फैली हुई थीं भाग्य की अनजान राहें साथ में बहता पसीना और थीं लाचार आहें जो अंधरों से न हारी उस अकेली किरण ने ही बो दिए कुछ मधुर सपने और मंगल कामना की

फूल ही देने लगे जब शूल का आभास मुझको जिंदगी तब सामने आ दे गई विश्वास मुझको साँस ने देखा अदेखा जंगलों तक धुंध फैला बूँद जो आई पलक पर सिंधु ने भी साधना की

हाथ अपने ही निरंतर कर्ज पा भारी चुकाना और धरती पर समूचे आकाश को था झुकाना एक ही झनकार थी जब आरती की वेदना की प्राण के पाटल चुने तब मौन हो आराधना की </poet>