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ज्योति सत्ता का गीत / निर्मला जोशी

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मैं तुम्हारी बाट जोहूँ
तुम दिशा मत मोड़ जाना।

तुम अगर ना साथ दोगे
पूर्ण कैरो छंद होंगे।
भावना के ज्वार कैसे
पंक्तियों में बंद होंगे।
वर्णमाला में दुखों की और
कुछ मत जोड़ जाना।

देह से हूँ दूर लेकिन
हूँ हृदय के पास भी मैं।
नयन में सावन संजोए
गीत हूँ, मधुमास भी मैं।
तार में झंकार भर कर
बीन-सा मत तोड़ जाना।

पी गई सारा अंधेरा
दीप-सी जलती रही मैं।
इस भरे पाषाण युग में
मोम-सी गलती रही मैं।
प्रात को संध्या बनाकर
सूर्य-सा मत छोड़ जाना।

फिर उतरते और चढ़ते
व्योम से ये ज्योति निर्झर।
एक दर्पण सामने कर
भाव झरते नेह अंतर।
जो लहर को खिलखिला
देता पवन का एक झोंका
मुक्त होकर ले लिया उस
मुक्ति का आधार मैंने।