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मिटने का खेल / महादेवी वर्मा
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मैं अनन्त पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बातें
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें
उड़ उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक
अमिट रहेगी उसके अंचल
में मेरी पीड़ा की रेख
तारों में प्रतिबिम्बित हो
मुस्कायेंगीं अनन्त आँखें
होकर सीमाहीन शून्य में
मंड़रायेंगी अभिलाषें