भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त -१ / गुलज़ार
Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 21 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह =यार जुलाहे / गुलज़ार }} {{KKCatNazm}} <poem> म...)
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ
कुचलता हुआ घास की कलगियाँ
गिरता हुआ गर्दनें इन दरख़्तों की छुपता हुआ
जिनके पीछे से
निकला चला जा रहा था वह सूरज
त'आक़ुब में था उसके मैं
गिरफ़्तार करने गया था उसे
जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था