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जाग तुझको दूर जाना / महादेवी वर्मा
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चिर सजग आँखें उनींदी
आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हॄदय में
आज चाहे कम्प हो ले!
या प्रलय के आँसुओं में मौन
अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को
ड़ोले तिमिर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में
निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर
चिन्ह अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!