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तुम्‍हारा लौह चक्र आया / हरिवंशराय बच्चन

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तुम्‍हारा लौह चक्र आया!


कुचल चला अचला के वन घन,

बसे नगर सब निपट निठुर बन,

चूर हुई चट्टान, क्षार पर्वत की दृढ़ काया!

तुम्‍हारा लौह चक्र आया!


अगणित ग्रह-नक्षत्र गगन के

टूट पिसे, मरु-सिसका-कण के

रूप उड़े, कुछ घुआँ-घुआँ-सा अंबर में छाया!

तुम्‍हारा लौह चक्र आया!


तुमने अपना चक्र उठाया,

अचरज से निज मुख फैलाया,

दंत-चिन्ह केवल मानव का जब उस पर पाया!

तुम्‍हारा लौह चक्र आया!