आस्था -५
तुमनें
बहते हुए पानी में
मेरा ही तो नाम लिखा था
और ठहर कर हथेलियों से भँवरें बना दीं
आस्थायें अबूझे शब्द हो गयी हैं
मिट नहीं सकती लेकिन..
आस्था -६
मेरे कलेजे को कुचल कर
तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?
मेरे प्यार
मेरी आस्थायें सिसक उठी हैं
इतना भी यकीं न था तुम्हें
कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें
कलेजा चीर कर
तुम्हें फूलों पर रख आता..