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चुप्पी के बारे में / शिवप्रसाद जोशी

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महाविस्फोट
की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था
तभी से समझो मैं हूँ
शायद मुझे तोड़ने के लिए ही टकराए थे धूल और गैस के पिंड
खेल के शुरू में
चुप बना रहा
आंइश्टाइन के वॉयलिन जैसा
जिसकी धुनों में फ़लसफ़े की गहरी ख़ामोशी है

जैसे शोर चलता जाता है अपने शब्दों के साथ
एक झटके में लांघ लेता है कई पहाड़
मैं किसी रेखा की तरह खिसकता रहता हूँ पहाड़ी टीले और
ढलानों पर फिसलता
श्रव्य के नीचे बहता पानी हूँ
आवाज़ मुझ पर से होकर गुज़र जाती है
मैं धड़धड़ाहट के नीचे हिलता हुआ पुल हूँ बस हिलता हुआ ही
वे कहते हैं चुप का ज़ोर नहीं
दरअसल मैं एक बच्चे की बनाई सीनरी हूं
सूरज नदी घास और मकान और सड़क
चुप के पहाड़ के आसपास डेरा जमा लेते हैं
इतनी ख़ामोश तो तितली भी नहीं रहती

चुप होना भी अपने में घुप्प होना है
जैसे बहुत रोशनी बहुत अंधेरा
बहुत तक़लीफ़ बहुत रात बहुत बेचैनी
दर्द में रहता हूं चुप्पी बन कर
जो आवाज़ें निकलती हैं वे
किंचित ख़ुशी किंचित उत्साह कुछ साहस की
चुप की ईंटे हैं
कोई इमारत नहीं बनती कोई दीवार या क़िला
बस ईंटे जैसी हैं वैसी ही रखीं हैं
चुप के संसार में पसरी हुई मगन

एक अटकन झगड़े में आ जाती है
कि चुप नहीं रहा जाता
कोई कुछ बोल पड़ता है
फिर प्रेम होता है या और क्लेश
धीरे-धीरे जो नफ़रत की सुलग है
वो चिंगारी क्या ख़ाक बनेगी
चुप की राख़ में दब जाती है
तब नहीं ठीक रहता मेरा चुप होना
मेरी राख़ में दबूंगा मैं ही

चुप की जगह कहाँ है
साँस के रास्ते में वो एक आड़ी तिरछी गली है
पलकों पर फड़फड़ाहट
अक्षरों शब्दों कौमा और विराम का फ़ासला
वो डॉक्टर मुर्के के ऑडियो टेप का बजता हुआ मौन है
पृथ्वी की धुरी का हिलता हुआ कोण
या दुनिया को काटती इक्वेटर की लाइन
ब्रह्मांड में झूलता वो शायद एक विशाल अंधकार है जिसके कोनो खुंजो में शब्द पड़े हैं
जो रोशनी वहाँ आती है वो शब्दों से धूल हटाती है
और उन्हें चुप में ढलने की हिदायत देती रहती है
मै शब्दों का एक अदृश्य प्रदेश हूँ
यहाँ मेरा शासन है शब्दों पर
मैं हरग़िज़ नहीं टूटूंगा वे कितना भी हिलें-डुलें

कभी मैं कितना बुरा और कभी
कितना भला चुप हूँ
अपने अंदर तो मैं और भी कई तरह का हूँ
बोलना कई ढंग का होगा लेकिन चुप से ज़्यादा क्या होंगे वे
और आलोचनाएँ
वे भी मेरे बारे में कितनी हैं
कहानी और कविता में भी एक हद तक उचित हूँ
फ़िल्मों में और नाटकों में और संगीत में मेरा ज़्यादा टिकना ठीक नहीं
चैप्लिन की ख़ामोशी क्या कर ग़ुज़री याद करो
और वो लिस्त ज़ार के शोर के विरोध में चुप हुआ तो हुआ
मेरे लिए सज़ायाफ्ता अक्सर
तबाह हो जाते हैं मेरे पैरोकार
चुपचाप निकल जाओ कहकर उन्हें डरा देते हैं लोग
तब मैं अपने बोरे से विरोध की कुछ किरचियाँ गिरा देता हूँ
इतना चुप भी मैं नहीं कि चुपचाप खदेड़ दिया जाऊँ
मैं मैकार्थी कमीशन के सामने खड़ा हुआ बर्टोल्ट ब्रेश्ट हूँ
बीटोफेन के बहरेपन का हाहाकार जो उसके संगीत में है बाज़दफा वो मैं ही हूँ

ख़ैर चुप का इस तरह बोलना सभी को खटकेगा
लेकिन मैं बाहर आता ही रहता हूँ
एक तो मुझमें भी सूराख़ हो सकने की गुंजायश है
बिना हवा बिना पानी
इतना अत्यधिक हो जाए मेरी काया ये भी ठीक नहीं।



टिप्पणियाँ

1. डॉक्टर मुर्के : प्रसिद्ध जर्मन कथाकार हाइनरिष हाइन की मशहूर कहानी डॉ मुर्के का मौन संग्रह।

2. लिस्त ज़ार के शोर के विरोध में चुप हुआ : पोलैंड के महान संगीतकार लिस्त एक सभा में अपनी प्रस्तुति दे रहे थे जहां ज़ार परिवार भी मेहमान था. उसके शोर को कई बार नज़रअंदाज़ करने के बाद लिस्त ने विरोध और खिन्नता में आखिर में अपना संगीत रोक दिया। ज़ार का ध्यान गया तो उसने पूछा क्यों रोका. इस पर लिस्त ने कहा कि जब राजा बोल रहे हों तो सबको चुप हो जाना चाहिए. संगीत को भी।