Last modified on 19 अक्टूबर 2009, at 14:28

दे दिया मैंने / रवीन्द्र भ्रमर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:28, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र भ्रमर |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> आज का यह पहल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज का यह पहला दिन
तुम्हें दे दिया मैंने

आज दिन भर तुम्हारे ही ख़यालों में लगा मेला,
मन किसी मासूम बच्चे-सा फिरा भटका अकेला,
आज भी तुम पर
भरोसा किया मैंने ।

आज मेरी पोथियों में शब्द बनकर तुम्हीं दीखे,
चेतना में उग रहे हैं अर्थ कितने मधुर-तीखे,
जिया मैंने ।

आज सारे दिन बिना मौसम घनी बदली रही है,
सहन आँगन में उमस की, प्यास की धारा बही है,
सुबह उठकर नाम जो
ले लिया मैंने ।