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कहियौ, नंद कठोर भये / सूरदास

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राग गौरी


कहियौ, नंद कठोर भये।

हम दोउ बीरैं डारि परघरै, मानो थाती सौंपि गये॥

तनक-तनक तैं पालि बड़े किये, बहुतै सुख दिखराये।

गो चारन कों चालत हमारे पीछे कोसक धाये॥

ये बसुदेव देवकी हमसों कहत आपने जाये।

बहुरि बिधाता जसुमतिजू के हमहिं न गोद खिलाये॥

कौन काज यहि राजनगरि कौ, सब सुख सों सुख पाये।

सूरदास, ब्रज समाधान करु, आजु-काल्हि हम आये॥


भावार्थ :- श्रीकृष्ण अपने परम ज्ञानी सखा उद्धव को मोहान्ध ब्रजवासियों में ज्ञान प्रचार करने के लिए भेज रहे हैं। इस पद में नंद बाबा के प्रति संदेश भेजा है। कहते है:- "बाबा , तुम इतने कठोर हो गये हो कि हम दोनों भाइयों को पराये घर में धरोहर की भांति सौंप कर चले गए। जब हम जरा-जरा से थे, तभी से तुमने हमें पाल-पोसकर बड़ा किया, अनेक सुख दिए। वे बातें भूलने की नहीं। जब हम गाय चराने जाते थे, तब तुम एक कोस तक हमारे पीछे-पीछे दौड़ते चले आते थे। हम तो बाबा, सब तरह से तुम्हारे ही है। पर वसुदेव और देवकी का अनधिकार तो देखो। ये लोग नंद-यशोदा के कृष्ण-बलराम को आज "अपने जाये पूत" कहते हैं। वह दिन कब होगा, जब हमें यशोदा मैया फिर अपनी गोद में खिलायेंगी। इस राजनगरी, मथुरा के सुख को लेकर क्या करें ! हमें तो अपने ब्रज में ही सब प्रकार का सूख था। उद्धव, तुम उन सबको अच्छी तरह से समझा-बुझा देना, और कहना कि दो-चार दिन में हम अवश्य आयेंगे।"


शब्दार्थ :- बीरैं =भाइयों को। परघरै =दूसरे के घर में। थाती = धरोहर। तनक-तनक तें =छुटपन से। कोसक =एक कोस तक। समाधान =सझना, शांति।